संपादकीय
‘मदद करेगा खुदा हौसले जवां रखो,
उठो और अपने उजालों का एहतमाम करो।
है चाँद और सितारों का इंतज़ार फिज़ूल ,
दिए जलाकर अंधेरो का कत्लेआम करो।‘
‘अभिभाषक वाणीज्ज् के दूसरे साल के पहले अंक की सम्पादकीय की रचना करते हुए बेहद आंतरिक खुशी की अनुभूति हो रही है, क्योंकि हम अपनी दूसरी पारी में पहुंच गये है और यह मौका निश्चित रुप से तभी मिलता है जब कि आपकी पहली पारी अच्छी रही हो। संघ के नये पदाधिकारियों खास तौर से सचिव शिवशंकर सिंह जी, सहसचिव गुलाब सिंह पटेल जी, कोषाध्यक्ष बृजेश शुक्ला जी तथा ग्रंथपाल परमान्द देशमुख जी के लिए अपनी ओर से विशेष आभार जरुरी है जिन्होंने खास रुची लेकर सम्पूर्ण देश में अपनी तरह के पहले, वकीलों के इस मुख पत्र को निरंतरता प्रदान की। जिला अधिवक्ता संघ दुर्ग के समस्त पदाधिकारी इस नेक काम के लिए इज्ज़त अफजा़ही के पात्र है। यह अंक सम्मान पूर्वक समर्पित है दुर्ग की वरिष्ठ महिला अधिवक्ता सुश्री रमा गुप्ता को, जिनकी उपलब्धियों पर हमे गर्व है।
इन दिनों हमने न्यायपालिका में पारदर्शिता एवं न्यायदान के लिए हमारे विधि समाज के सरपरस्त मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालकृष्णन साहब की गम्भीरता को महसूस किया है। न्यायाधीशों की सम्पत्ती की घोषणा अनिवार्य करने के लिए सरकार द्वारा संसद में विधेयक का पेश करना, मुख्य न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीशों को इसका पालन नहीं करने पर इसे कदाचार मानने तथा ऐसे न्यायाधीशो को सजा देने अथवा नौकरी से हटा देने के प्रावधान की घोषणा करने तथा बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यक्रम में यह उद्गार की "Those who seek to uphold the law must first demonstrate their own professional lives" तथा न्यायाधीशो के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए सरकार द्वारा न्यायिक जांच विधेयक की तैयारी को इसी परिपेक्ष्य में देखा जा सकता है। इसके अलावा कोलकाता उच्चन्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन पर महाभियोग चलाने का फैसला, उच्चतम न्यायालय द्वारा पूरे मुल्क में 4000 नये न्यायालयों की स्थापना जिसमें लगभग 70 विशेष न्यायालय सीबीआई के प्राकरणों के लिये तथा 200 कुटुंब न्यायालयों को खोलने के प्रस्ताव से आम लोगों में यह संदेश गया है कि लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या और बड़ते भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। लॉ कमीशन द्वारा हाल ही में जारी 230वीं रिपोर्ट में दिये गये सुझाव जिसमें पैरवी करने वाले उच्च न्यायालयों में ही अभिभाषकों की न्यायाधीशों के रुप में नियुक्ति न किये जाने की बात कही गयी है, का वकीलों ने भी खुलकर समर्थन किया है।
वक्त के साथ सुधार ज़रुरी है, कानून मंत्री विरप्पा मोईली और मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन साहब बेहद ही सधे हुए कदमों से बड़ी मजबूती से आगे बड़ रहे है, वहीं व्यवस्था में सुधार की उम्मीद के साथ सभी ओर भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी हमारे प्रजातंत्र के सिद्धांत पर आधारित मुल्क की असली मालिक प्रजा सस्ता, शीघ्र और सुलभ के साथ साथ सा$फ और पारदर्शी न्यायिक व्यवस्था के इंतेजार में है।
आप सबको आजादी की सालगीरह की मुबारकबाद, अगले अंक में फिर मिलने के वादे के साथ...।
वक्त की कदर करोगे तो सॅवर जाओगे,वक्त हर शै से जमाने में बड़ा होता है ।
शकील अहमद सिद्दीकी
संपादक
9713261-786
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