अंतर्जातीय विवाह एवं भारतीय संविधान
भारतीय संविधान की अनुच्छेद 32 सांविधानिक उपचारों का अधिकार के तहत भारत के किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन किसी के द्वारा किया जाता है तो वह सीधे भारत के उच्चतम न्यायालय में समुचित कार्यवाहियों द्वारा अपने अधिकारों को प्रवर्तित करा सकता है क्यों कि अनु.32 (1) उच्चतम न्यायालय को समुचित कार्यवाहियों द्वारा प्रचालित करने का अधिकार की गारंटी करता है। साथ ही अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रदत व्यक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन कोई नहीं कर सकता है।
जाति प्रथा राष्ट्र पर एक अभिशाप है और जितनी शीघ्रता से इसे विनष्ट कर दिया जाये उतना ही बहतर होगा। वास्तव में यह उस समय राष्ट्र को विभाजित कर रहा है, जब हमें राष्ट्र के समक्ष चुनौतियों का सामना करने के लिये संयुक्त होना है। अत: अनर्तजातिय विवाह वास्तव में राष्ट्रीय हित में है क्योंकि इनका परिणाम जाति प्रथा को विनष्ट करने में होगा लेकिन ऐसे विक्षुब्धकारी समचार देश के अनेक भागों से आ रहे है कि उन नवयुवक पुरुषों एवं नवयुवती महिलाओं को जो अन्तर्जातीय विवाह करते है या उन पर वास्तव में हिंसा कारित की जाती है। ऐसी हिंसा या धमकी या उत्पीडऩ के कार्य सम्पूर्ण रुप से अवैधानिक है और उन्हें जो ऐसे अवैधानिक कार्य करते है, कठोरता से दण्डित किया जाना चाहिये। यह चिन्ता माननीय उच्चतम न्यायालय ने निम्र प्रकरण में व्यक्त किया। उत्तर प्रदेश राज्य की एक 27 वर्षिय नवयुवती जो अपने पिता के मृत्यु के पश्चात अपने भाई के साथ रह रही थी। वह अपने भाई का घर स्वेच्छा से छोड़कर एक व्यक्ति ब्रहानंद गुप्ता से आर्य समाज मंदिर में जाकर विवाह कर ली। भाई ने पुलिस में अपनी बहन के गायब होने की रिपोर्ट लिखाया। पुलिस ने उसके पति और बहनों को गिरफ्तार कर लिया। नवयुवती के बयान के बावजूद मजिस्ट्रेट ने उसकी गिरफ्तारी का वारण्ट जारी कर दिया।
बाद में पुलिस ने इस मामले में अपनी फाइनल रिपोर्ट दी थी। माननीय उच्चमत न्यायालय ने इस मामले में गम्भीर चिंता व्यक्त किया और यह अभिनिर्धारित किया कि पिटीशनर व्ययस्क थी और उसे अपनी स्वेच्छा से किसी भी व्यक्ति के साथ विवाह करने का अधिकार था। उसने कोई अपराध नहीं किया था अत: उसके विरुद्ध मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा चलाया गया आपराधिक मामला अभिखण्डित कर दिया गया और पुलिस प्रशासन को यह निर्देश दिया गया कि नवयुवती को परेशान न करे तथा उसे पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें।
लता सिंह विरुद्ध राज्य ए.आई.आर 2006 एस.सी.2522
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