माँ : अजीत कुमार राजपूत अधिवक्ता, दुर्ग
ममता की मूरत होती है माँ
खुद को भूख रखती, हमें दूध पिलाती है माँ
खुद तो गीले में सोकर हमें सुखे में सुलाती है माँ
खुद को तपती है पर हमें आँचल की छाया दिलाती है माँ
कहीं हमारे पग डिग जाये तो,
ऊंगली पकड़ चलना सिखाती है माँ,
बच्चे की तोतली बोली सुन अपना दु:ख दर्द मिटाती है माँ
हमें कहीं पर चोट लगे तो आँसू बहाती है माँ
बच्चे की करुण पुकार सुन अपनी करुणा दर्शाती है माँ
नौ माह कठिन ताप कर हमें, एक नई जीवन देती है माँ,
बेटों के सताये रोती है, पर बेटों को हंसाती है माँ,
खुद तो नंगा पैरों चलती, हमें गोद उठाती है माँ,
ऐसी करुणामयी, ममतामयी `माँ' को मेरा सतत् प्रणाम है ।
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