अदालती व्यवस्था में प्रबन्धन की आवश्यकता :. आर.एस. यादव प्रबंध सम्पादक

दुर्ग । ९ जुलाई २००७ से देश की अदालतों का बेहतर ढ़ंग से आधुनिकीकरण करने हेतु देश के तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति महोदय ने १5‍००० लैपटॉप बाँटकर शुरुआत की । इस प्रकार अब देश की अदालतें भी ब्रिटेन, जापान व अमेरिका की तरह हाइटेक हो रही है । आज पूरे देश में लगभग पौने तीन करोड़ मामले लम्बित हैं जो कि वर्तमान अदालती व्यवस्था से २० वर्षों में भी निपटने वाले नहीं है । न्यायिक प्रणाली में बहुत सुधार हुआ है परन्तु अभी भी काफी सुधार की गुंजाइश है । खासकर आपराधिक मामलों में तो पूर्व की भांति एक निश्चित समय सीमा निपटाने के लिए निर्धारित ही होनी चाहिए । जैसा कि कामन कॉज वि. बिहार सरकार के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने समय सीमा की व्यवस्था देते हुए निर्णय दिया था जिसके कारण बहुत सारे आपराधिक प्रकारण निपट गए थे परन्तु पुन: कुछ बदलाव के साथ स्पष्टीकरण के जरिए उक्त फैसले में संशोधन किया गया जिससे कि पूर्ववत स्थिति पुन: हो गई । आज स्थिति यह है कि आपराधिक प्रकरणों में खासकर सत्र न्यायालय से निचली अदालतों में प्रकरणों का अम्बार लगा हुआ है । मात्र पेशी के कारण वर्षों से छोटे-छोटे मामले लम्बित पड़े हैं इसका प्रमुख कारण ही यह है कि प्रकरण के गवाहों को एक दो बार में तो समन्स की तामली हो ही नहीं पाती है । जबकि छोटे प्रकरणों का निपटारा संक्षिप्त प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है । पुराने लम्बित प्रकरणों को निपटारे के चक्कर में अदालतें नए प्रकरणों की तरफ ध्यान नहीं दे पाती है जिससे कार्य का बोझ एवं प्रकरणों की संख्या दिनों दिन बढ़ गई है । आज आवश्यकता है कि न्यायालयों को कामकाज करने के लिए बेहतर प्रशिक्षण देते हुए मैनेजमेंट की तर्ज पर कार्य की योजना बनाई जाए ।
आज जब न्यायालय लैपटॉप से सुसज्जित हो रहे हैं तो वही वकीलों को आज भी पुराने ढ़ंग से कार्य करने की आदत है । अब वकीलों को भी कम्प्यूटर का प्रशिक्षण दिए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए । इसी प्रकार विधि की डिग्री के लिए कम्प्यूटर का ज्ञान आवश्यक किया जाना चाहिए । अदालती तन्त्र का विकास इस तरह होना चाहिए कि उससे जुड़ने वाले हर व्यक्ति को कम्प्यूटर का ज्ञान हो । हमारी कल्पना शीघ्र, सस्ता व सुलभ न्याय की रही है पर यह कल्पना कारगर साबित नहीं हुई है तथा यह अवधारणा बेहतर प्रतिसाद नहीं पा सकी है । आज पूरी अदालती व्यवस्था को बेहतर प्रशिक्षण की आवश्यकता है । अब वर्किंग स्टाइल अर्थात् कार्य योजना का विकास उसी तरह किया जाना चाहिए जिस तरह अन्य संस्थानों में किया जाता है । अब बेहतर प्रबन्धकीय ढ़ंग से कार्य करने की आवश्यकता है । जिसके लिए प्रबन्धकीय कार्य योजना पर प्रशिक्षण की शुरुआत होनी चाहिये ।

एक दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार ने मुझसे सवाल किया था कि न्यायालय में प्रकरण को लम्बित रखने में वकीलों की विशेष भूमिका होती है । ऐसी सोच आम जनता में है ? मैंने जोरदार ढ़ंग से विरोध करते हुए स्पष्ट किया था कि इसके लिए वकील दोषी नहीं होता है । अपवाद स्वरुप व्यवहार मामलों को यदिे छोड़ दिया जाए तो अपराधिक मामलों को लम्बित करने के लिए वकील नहीं बल्कि अभियोजन एवं अदालती प्रक्रिया जवाबदार है । आपराधिक मामलों में वकील को गवाह की उपस्थिति पर समय मांगने पर न के बराबर ही समय दिया जाता है पर गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का कार्य अभियोजन का होता है । आज अदालतें भी अभियोजना का कार्य करने लगी है तथा साक्ष्य हेतु अंतिम अवसर के बाद भी अवसर प्रदान करती है । कई पेशियाँ अभियोजन को साक्ष्य हेतु दी जाती है पर स्थागन आवेदन इसलिए खारिज कर दिया जाता है कि आरोपी दो-तीन पेशी से उपस्थित नहीं हो रहा है । यह दोहरा मापदण्‍ड अदालतों को नहीं अपनाना चाहिए । हजारों प्रकरण कई वर्ष से सिर्फ अभियोजना साक्ष्य हेतु चले आ रहे हैं । जिनमें साक्ष्य का अवसर समाप्त किया जाना चाहिए । यदि अदालतें अभियोजन के प्रति कड़ा रुख अपना ले तो निश्चित ही प्रकरणों का निपटारा समय पर एवं शीघ्र होना प्रारंभ हो जावेगा ।

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