भारतीय अर्थव्यवस्था एवं व्यावहारिक न्यायालय : . मो. दानिश परवेज अधिवक्ता, दुर्ग

भारतीय कानून भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास एवं प्रगति का सोपान कहा जा सकता है । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून ही सर्वोपरि रहा है इन्हीं कानून के दायरे में रहकर ही हर व्यक्ति, समाज, राजनीतिज्ञ, कानूनविद, न्याधीश, अर्थशास्त्री सभी कार्य करते है क्योंकि कानून से ऊपर यहाँ कोई नहीं है जो व्यक्ति इन कानून के दायरे से बाहर जाकर कोई कार्य करता है नि:सन्देह वह भारतीय कानून व्यवस्था के तहत् अपराध है और वह व्यक्ति अपराधी ।

भारत एक कृषि प्रधान देश है । भारत की ७०% आबादी कृषि पर आधारित है । यहाँ पर खेतीहर किसान गरीब है व कृषि के लिए मानसून पर निर्भर है । इन गरीब किसानों के लिए कानूनी पेचीदगियाँ हमेशा से ही कृषि का विकास करने में बाधक रही हैं और जिस देश की ७०% आबादी कृषि पर आधारित है उस देश का गरीब किसान कानून की पेचीदगियों में उलझकर रह जाएगा तो उस देश की अर्थव्यवस्था कैसी होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ?

भारत में बनी अदालतें जमीन सम्बन्धित मामलों में शीघ्र न्याय दिला पाने में असफल साबित हुई है उसका कारण तो सभी को मालूम है परन्तु सरकारें इस दिशा में कार्य नहीं कर रही है ।

भारत की अदालतों में सिविल व आपराधिक मामलों में निराकरण के लिए एक ही मजिस्ट्रेट के ऊपर काम का बोझ लाद दिया गया है । जिसमें आपराधिक व रिमांड मामलों की सुनवाई प्रतिदिन करना आवश्यक हो जाता है, व इन्हीं आपराधिक मामलों की बढ़ती तादाद की वजह से सिविल मामलों की सुनवाई निचली अदालतों में लम्बित रह जाती है व कानून की मजबूरी हो जाती है कि तारीख पर तारीख आगे बढ़ाई जाएं व गरीब किसान अदालतों के चक्कर में ही अपनी चप्पलें घिस डालता है । उसके बाल अदालत आते-आते काले से सूर्ख सफेद हो जाते हैं, उसके बच्चों के भी बच्चे हो जाते है परन्तु सिविल न्यायालय की फाईल अपनी जगह पर ही अडिग रहती है ऐसे जानबूझ कर तो नहीं किया जाता, पर यह कानून की मजबूरी हो गई है तथा असल हकीकत भी यही है ।

आज आवश्यकता है कि देश भर में बढ़ रहे मामलों को देखते हुए अदालतों का विस्तार किया जाए और सबसे अहम बात तो यह कि ``सिविल मामलों की सुनवाई के लिए पृथक'' व आपराधिक मामलों की नियुक्ति की जाए, भूमि सम्बन्धित मामलों की सुनवाई के लिए जिला स्तर पर ही अंतिम न्यायालय की व्यवस्था की जाए, जिसमें न्यायिक कमेटी का गठन कर अंतिम निर्णय दिया जा सके, तहसील (राजस्व न्यायालय) में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाए व इन राजस्व न्यायालयों में भी तहसीलदारों के समकक्ष, राजस्व निरीक्षकों, पटवारियों के समकक्ष राज्य सरकार द्वारा नामित कमेटी का गठन कर सदस्यों को नियुक्ति की जाए, व समय-समय पर इनके द्वारा किये जा रहे कार्यों की समीक्षा की जाएं व इनमें आ रही दिक्कतों का समय पर निदान भी किया जाए तभी गरीब खेतिहर किसानों को उनका वाजिब हक मिल सकेगा । अन्यथा ...?

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