बढ़ती महंगाई और अभिभाषक शुल्क में संतुलन आवश्यक : एन.रवि कुमार, अधिवक्ता, दुर्ग
आसमान छूती महंगाई द्वारा बिगाडे गये आय एवं व्यय के मध्य संतुलन बनाने हेतु आम आदमी जिन कठिन परिस्थितियों से दो चार हो रहा है, अधिवक्तागण भी उसमें अछूते नहीं है । अभिभाषण शुल्क में सन् १९९६ में संशोधन हुआ है जो कि तत्कालीन मध्यप्रदेश के गजट में दिनांक २ण्.०३.९६ को प्रकाशित हुआ उसके बाद से महंगाई निरन्तर बढ़ती जा रही है जिस पर अंकुश लगना असंभव है । पिछले १२ वर्षों में लगभग सभी वस्तुओं के मूल्य में ण्० से १००% तक की वृद्धि हो चुकी है । इस परिस्थिति के चलते वर्तमान में निर्धारित अभिभाषक शुल्क किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है, उसका बढ़ाया जाना नितान्त आवश्यक एवं समय की माँग है ।
इससे भी अधिक चिन्तनीय स्थिति न्यायालय में आने वाले गवाहों की है । गवाह न्यायिक प्रक्रिया एवं न्याय दान किये जाने में अहम् भूमिका निभाते हैं किन्तु उनको दिया जाने वाला व्यय अत्यन्त कम होने से वे न्यायालय में आकर गवाही देने में आनाकानी करते हैं जिससे न केवल प्रकरण की प्रक्रिया में विलम्ब तो होता ही है अपितु कभी-कभी न्याय भी प्रभावित हो जाता है जो किसी भी प्रकार उचित नहीं कहा जा सकता है । अत: अभिभाषक शुल्क एवं साक्षियों को दिये जाने वाले शुल्क में समय अनुसार संशोधन आवश्यक है ।
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