शिवनाथ के तीर स्वतंत्रता आंदोलन का शंखनाद

``शिवनाथ नदी'' छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदी तो है ही साथ ही साथ ``शिवनाथ'' नाम होने के कारण इस का धार्मिक महत्व भी है । यहाँ के स्वतंत्रता आंदोलन कारियों हेतु ``कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ कि उथल पुथल हो जाये'' की उक्ति के अनुसार अंग्रेजों के लिए उथल पुथल करने वाला भी रहा है । राष्ट्र के अन्य स्थलों की तरह दुर्ग के अधिवक्तागण भी इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के निरन्तर अथक प्रयास करते रहे हैं । इन स्वतंत्रता आंदोलनकारियों में हमारे पूर्वज अधिवक्ताआें में सर्वश्री दाऊ घनश्याम सिंह गुप्ता, वासुदेव श्रीधर किरोलिकर, पं. रत्नाकर झा, नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, विश्वनाथ यादव तामस्कर, केशल लाल गुमाश्ता व पं. द्वारका नाथ तिवारी सदृश्य मातृभूमि के सपूतों का नामोल्लेख करना अप्रत्याशित न होगा । इन सब मातृभूमि सपूतों के हृदय में सदैव ``सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है'' की उक्ति आलोड़न-विलोड़न करती रही है । ये सब मंशा - वाचा - कर्मणा राष्ट्र के लिए जिये और राष्ट्र के लिए ही अपनी प्राण लीला को समाप्त किया। दुर्ग के स्वतंत्रता आंदोलनकारी बापू के `करो या मरो' के उद्घोष के साथ ८ अगस्त १९४२ को प्रात: दुर्ग के दीवाने बर्बर ब्रिटिश शासन को चुनौती देते हुए बलिदान के लिए आनन्द से झुमते हुए इस गीत को गाते हुए निकल पड़ते थे-
`सर बांध कफनवा हो, शहीदों की
टोली निकली'- और
`दिन खून के हमारे, प्यारों न भूल जाना,
खुशियों में अपनी हम पर आंसू बहाते जाना,
सैय्याद ने हमारे चुन-चुन के फूल तोड़े ।
वीरान इस चमन में अब गुल खिलाते जाना ।''
कुछ कैद मे पड़े हैं, कुछ कब्र में पड़े हैं,
दो बूंद आंसू इन पर, प्रेमी बहाते जाना ।
दुर्ग का विद्यार्थी समुदाय भी आंदोलनकारियों के साथ राग में राग मिलाते हुए कदम से कदम मिलाकर चलने लगा था । विद्यालयों में शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों की सहयोग एवं अनुपस्थिति के कारण विद्यालय बन्द रहने लगे थे । शिक्षकगण किसी संकट की घड़ी में छात्रों की उपस्थिति देकर उन्हें बचा लिया करते थे और छात्र समुदाय मस्त होकर
माँ मेरे रंग दे बसंती चोला
इसी रंग में रंग शिवा ने
माँ का बन्धन खोला । माँ .....
दुर्ग के आन्दोलनकारियों के कूद कर जेल जाने के कारण एक अन्तहीन कतार लग गई इन लोगों में ऊपर वर्णित आन्दोलनकारियों के अतिरिक्त मोहनलाल बाकलीवाल, पी.आर. डोनगाँवकर, केजू राम चन्द्राकर, गंगा प्रसाद चौबे, विष्णु प्रसाद चौबे, रामरतन गुप्ता, रामकुमार सिंगरौल, रघुनंदन सिंगरौल, लक्ष्मण मारोती देशमुख, कस्तूरचंद जैन, उदयराम वर्मा, रामदास गुप्ता, झुमुक लाल दुबे, बंगाली प्रसाद स्वर्णकार, मोतीलाल बंशीलाल स्वर्णकार, धनराज देशलहरा, भागबली चन्द्राकर, श्रवण कुमार धोबड़े, नरेन्द्र कुमार कटोर, चन्द्रीका प्रसाद गुप्ता, डॉ. जगदीश चन्द्र मिश्रा, जमुना प्रसाद कसार और निरंजन लाल जी गुप्ता सदृष्य सहृदय स्वतंत्रता आन्दोलनकारियों के प्रति हम सब श्रद्धा से नतमस्तक होते हैं । बापू के आन्दोलन की एक अद्भुत विशेषता यह रही है कि ज्यों ज्यों ब्रिटिश दमन चक्र तेज होता था त्यों-त्यों आन्दोलन भी गतिवान हो जाता था ।
सन् १९२१ में दुर्ग ने कांग्रेसियों द्वारा पाटन में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया था । इस आयोजन में पं. सुन्दर लाल और भगवान दीन ने तूफानी भाषण दिया था । २५ फरवरी १९२३ को दुर्ग में एक सभा आहूत की गई थी जिसमें पं. रविशंकर शुक्ला और छात्र घनश्याम सिंह गुप्ता ने उत्साहवर्धक एवं जन जागरण की दिशा में ओजस्वी भाषण दिया था। १५ फरवरी १९२४ को कांग्रेस का एक अधिवेशन आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता पं. सुन्दर लाल शर्मा ने की थी । इन तीनों सभाआें और अधिवेशनों का प्रभाव यह पड़ा कि जन-जन के मन से शासन (अंग्रेज) का भय समाप्त हो गया था और बड़ी संख्या में लोग स्वतंत्रता आन्दोलन में जुड़ते गए । सब के मानस पटल पर एक ही गीत बार-बार ``स्मृति'' के रुप में मुखरित होने लगा -
निकल पड़ो अब बनकर सैनिक
भय न करो इन प्राणों का
बिन स्वराज के नहीं हटेंगे,
कौल रहे मर्दानों का ।।
अंधी होकर पुलिस चलावे
डंडे कुछ परवाह नहीं
निकले मुख से आह नहीं
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि ``शिवनाथ के तीर'' का यह स्वतंत्रता आन्दोलन ``रत्नाकर'' की भांति सदैव अविस्मरणीय एवं चिरकालीन रहेगा ।


- सुशील कुमार त्रिपाठी
प्रधान संपादक
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