संपादकीय

``दिलों के बन्द किवाड़ो को खोलते ही नहीं
दुआएं मांगते फिरते हैं रोशनी के लिए ''
हाल ही में हमने अपने मुल्क़ की आज़ादी की ६१ वीं सालगिरह मनाई । छह दशक से ज़्यादा का वक्त यूं देखें तो बहुत होता है इतनी उम्र में पहुँचने पर एक आम इंसान को रिटायर्ड मान लिया जाता है, पर २०० साल गुलामी की बेड़ियों में जकड़े रहने के बाद और हम पर शासन करने वालों द्वारा इन २०० सालों में हमारी संस्कृति और परम्पराआें को बदलने के इरादे से रची गई साज़िशें इतनी मज़बूती से आज भी अपना काम कर रही हैं कि आज ६० साल होने के बावजूद भी हम अपने आपको पूरी तरह आज़ाद महसूस नहीं कर पा रहे हैं ।
मुल्क़ की आज़ादी में वकीलों की अहम भूमिका किसी से छिपी नहीं है खुद हमारे शहर की बात करें तो आधा दर्जन वकीलों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय हिस्सेदारी निभाई है और पूरे छत्तीसगढ़ सूबे की बात करें तो ये गिनती कई दर्जन में पहुँच जायेगी - तो हम आज़ादी की बात कर रहे थे ``अभिभाषक वाणी'' का ये दूसरा अंक आपके हाथों में है, इसे हमने एक ऐसी मशाल बनाने का ख्वाब देखा है जो एक मिसाल बनकर इंसाफ की लड़ाई लड़ने वालों को एक नई रौशनी से रौशन कर सके ।
हमारे मुल्क़ में हमारे परिवार के मुखिया उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश श्री के.जी. बालाकृष्णन ने हाल ही में ७ मई १९९७ को पारित एक प्रस्ताव के हवाले मुल्क़ के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को खत लिखकर उनसे उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों की तरह अपनी सम्पत्ति की घोषणा करने को कहा है ।
उनके अनुसार एक आज़ाद, मजबूत, सम्मानित न्याय पालिका और निष्पक्ष न्याय के लिए ये बेहद ज़रुरी है।
वहीं हमारे मुल्क़ के ही एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश वी.एन. खरे साहब ने भी अपने एक लेख में गाजियाबाद न्यायालय में हाल ही में हुई गड़बड़ियों की शिकायतों के हवाले हमारी

3 comments:

shama 16 October 2008 at 20:59  

Ek baat kehna chaungee...angrezonke zamaneme bane gaye kayee qanoon gunahgaronko mehfooz rakhneke liye banaye gaye hain...kyonki uswaqt zyada gunaah angrezi hukumatwalehee karte the. Aise kayee qanoon hain jo badle jaane chahiyen...ye samayki pukar hai ...lekin Rajeev Gandhike samay unki sampoorn mejority hote huebhee badle nahee gaye.
Indara Gandhi ke hatyake chashmadeed gawah hokebhee unke hatyaronko faansee lagneme kitne saal beet gaye!!Mai Koyi Indiraajeeki fan nahee, par hatya to hatya hai !Jis naami giraami vakeelne hatyaronki orse case lada, wo qanoonke sare loop holes jaante the !
Kitnee baar sangeen jurm karnrwale isliye chhot jaate hain kyonki, ye jaante huebhee ke gunah kitna sangeen hai, vakeel nyayvyawasthako puri tarahse pachhad jaate hain..kewal qanooni danwpechonke zariye aur janta dekhti/padhti reh jaatee hai !Istarahke gunahgaronka case lenahi ek jurm hona chahiye...! Apnee atmaako sakshi rakhke koyibhee case lada jaana chahiye. Ye mera vichar hai. Aapka kya khayal hai?

shama 16 October 2008 at 21:00  

Mere blogpe aake sundar tippanee dee, iske liye behad shukr guzaar hun(Ek baar phir Duvidha!)

36solutions 16 October 2008 at 21:19  

shama said...
एक बात कहना चाहूंगी ...अंग्रेजों के ज़माने मे बनाए गए कई कानून गुनाह्गारों को महफूज़ रखने के लिए बनाये गए हैं ...क्योंकि उस वक्त ज़्यादा गुनाह अंग्रेज़ी हुकुमात्वालेही करते थे . ऐसे कई कानून हैं जो बदले जाने चाहियें ...ये समयकी पुकार है ...लेकिन राजीव गांधी के समय उनकी सम्पूर्ण मेजोरिटी होते हुए भी बदले नही गए .
इंदिरा गाँधी के हत्या के चश्मदीद गवाह होके भी उनके हत्यारों को फांसी लगने मे कितने साल बीत गए !! मैं कोई इंदिराजी की फैन नही, पर हत्या तो हत्या है! जिस नामी गिरामी वकील ने हत्यारों की ओरसे केस लड़ा, वो कानून के सारे लूप होल्स जानते थे !
कितनी बार संगीन जुर्म करने वाले इसलिए छूट जाते हैं क्योंकि, ये जानते हुए भी के गुनाह कितना संगीन है, वकील न्‍याय व्‍यवस्था को पुरी तरह से पछाड़ जाते हैं ..केवल कानूनी दांव पेंचों के ज़रिये और जनता देखती /पढ़ती रह जाती है ! इस तरह के गुनाह्गारों का केस लेना ही एक जुर्म होना चाहिए ...! अपनी आत्मा को साक्षी रख के कोई भी केस लड़ा जाना चाहिए. ये मेरा विचार है .
आपका क्या ख्याल है ?


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