प्राथमिकी (एफ.आई.आर.) दर्ज नहीं की....जेल जाओ - उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में हील हवाले को गंभीरता से लेते हुए ऐसे प्रकरणों में दोषी पुलिस अधिकारी को कड़ी फटकार लगते हुए कहा ``भारत में अधिकारी केवल चाबूक की भाषा ही समझते हैं''। उच्चतम न्यायालय ने प्राथमिकी दर्ज नहीं करने को अदालत की अवमानना की श्रेणी में माना है । व ऐसे प्रकरणों में यदि आरोपी अपनी कार्यवाही को न्यायसंगत सिद्ध करने में असफल रहे तो ऐसे दोषियों को जेल जाने हेतु तैयार रहने को कहा है । उच्चतम न्यायालय ने पुलिस कर्मियों के इस तर्क को सिरे से नकार दिया है कि ऊपर वर्णित स्थिति उन लोगों के लिए है जो पुलिस से वैमनस्यता रखते हैं और पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं वे इस प्रावधान का दुरुपयोग कर सकते हैं । उच्चतम न्यायालय की बैंच ने पुन: इस बात पर जोर देते हुए कहा है कि ``भारत में अधिकारी केवल उसी समय सचेत होते हैं जब चाबूक लहराई जाती है । क्या यही स्वराज की अवधारणा है ?''
उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री बी.एन. अग्रवाल की बैंच ने बहुचर्चित २३ करोड़ के भविष्य निधि घोटाले पर एक भूतपूर्व विधि मंत्री की याचिका पर सुनवाई करते समय उपरोक्त विचार व्यक्त किया था । इसी निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने पुलिस की जिम्मेदारियाँ निर्धारित करने वाली एक विस्तृत प्रक्रिया भी जनसामान्य के लिए भी प्रतिपादित की है । न्यायमूर्ति अग्रवाल व न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी की बैंच ने कहा है कि ``यदि पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने में मना करती है तो भुक्तभोगी अपने क्षेत्र के मुख्य न्यायिक दण्ड अधिकारी के पास संबंधित पुलिस अधिकारी की शिकायत लेकर जा सकता है जो समयबद्ध निश्चित कार्यवाई सुनिश्चित करेंगे व इस पर भी संबंधित पुलिस अधिकारी द्वारा कार्यवाई न करने पर उन्हें जेल भी भेज सकेंगे । उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही व प्रकरण के दौरान निलंबित भी किये जा सकेंगे ।''
ललिता कुमारी की एक याचिका जिसमें उसने अपनी अवयस्क पुत्री के लापता होने की प्राथमिकी हेतु उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा निष्क्रियता दिखाने के कारण १४ जुलाई २००८ को मत व्यक्त किया कि ``यह पूरे देश में नागरिकों का यह अनुभव रहा है कि पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने में सामान्य लोगों के प्रति निष्क्रियता दिखाती है व निष्पक्ष ढ़ंग से कार्य नहीं करती है । बहुत बड़ी संख्या में प्रकरणों में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी प्रकरण में जाँच प्रारंभ नहीं होती जैसा की उपरोक्त प्रकरण में परिलक्षित हो रहा है । भुक्तभोगी की पुत्री का पता लगाने एवं आरोपी को गिरफ्तार करने में सामान्य प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है । न्यायिक बैंच ने पूर्व प्रकरण में न्यायिक दण्डाधिकारी द्वारा कार्यवाही करने से क्षुब्ध पुलिस कर्मी द्वारा दण्डाधिकारी पर हमला करने वाले पुलिस कर्मी की जमानत याचिका नामंजूर कर दी थी ।
(साभार : टाईम्स ऑफ इंडिया, सहयोग : श्री टी.पी.सी गुप्ता, अधिवक्ता दुर्ग)

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