इस रात की कोई सुबह भी है ?

दिनेश राय द्विवेदी, अधिवक्ता,
कोटा राजस्थान


देश के कुल आठ लाख वकील और अदालतें ? चौदह हजार मात्र । याने एक अदालत में काम करने को औसतन ५७ वकील जज केवल बारह हजार । याने ६६ वकीलों के लिए एक जज । और एक जज के पास निर्णय करने को ३१७० मुकदमें । साल में दिन ३६५/३६६ काम के दिन मात्र २०० एवं दिन में ६० मुकदमों में सुनवाई हो तो हर १ मुकदमें में अगला सुनवाई के लिए दिन दय होगा (अगली पेशी) तीन माह बाद । याने साल में चार सुनर्वा से अधिक नहीं । एक जज एक मुकदमें में रोज निर्णय करें, तो साल में निर्णय होंगे केवल २०० पूरे देश में निपटेंगे केवल २४,००,००० मुकदमें । आज से देश की किसी अदालत में कोई नया मुकदमा दाखिल न हो, कोई किसी भी मुकदमें के निर्णय और आदेश की कोई अपील न करें तब मौजूदा मुकदमों को निपटाने में समय लगेगा १२ वर्ष ।
ऊपर की पंक्तियों से जो दृश्य बन रहा है वह सुबह का है या दोपहर, सांझ रत्रि या अर्धरात्रि का ? आप खुद देख लें । कोई इसे दिन कहें तो उस की दृष्टि शक्ति पर प्रश्न चिन्ह जरुर लगेगी । इस रात की कोई सुबह भी है ?
हर रात की होती है इस रात की भी होगी . प्राकृतिक सुबह ऋतु के नियमों से होती है । मनुष्यों के बनाई व्यवस्था में सुबह के लिए प्रयत्न करना होता है । यह प्रयत्न प्रारंभिक रुप से वही करता है जिसे सब से अधिक कष्ट होता है । दूसरे लोग साथ देते हैं । इस न्याय प्रणाली से किसे सबसे अधिक कष्ट है ।
(साभार : तीसरा खंबा ब्लॉग)

अधिवक्ता नरेन्द्र गुप्ता, दुर्ग द्वारा प्रदत्त

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