अतीत की अनुभूतियाँ

स्वतंत्रता संग्राम सैनानी श्रद्धेय राम कुमार सिंगरौल

नवीन कुमार सिंगरौल
अधिवक्ता, दुर्ग

हमारे परिवार में सब लोग छोटे-छोटे केशों वाले उन्नत ललाट गमछा जैसे धोती को लपेटने वाले व्यक्तित्व को ``बापू जी'' के नाम से सम्बोधित करते थे । वे शरीर पर तीन जेब वाली बन्डी या पट्टी वाले छोटे कालर की हाफ कमीज, पैरों में मजबूत पंप शू, एक हाथ में झोला, दूसरे में छाता लिए हुए, सड़क के किनारे तेजी से चलते हुए दिखने वाले व्यक्ति को ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री रामकुमार सिंगरौल की संज्ञा से सम्बोधित किया जाता था ।
आज के मुखार बिन्दू पर हल्की सी मुस्कान सदा देखी जा सकती है । आपका जीवन भी कष्ट कंटका कीर्ण रहा लेकिन आप उन पर विश्वास न करते हुए सदैव चरेवेती-चरेवेती के पोषक रहे । चिन्ता और क्रोध मैंने उनके मुख मंडल पर कभी देखी भी नहीं । आप जीवन पर्यान्त अपी सीमा के भीतर किसी भी व्यक्ति सहायक और सहयोग प्रदान करने के लिए तत्पर रहते थे । जीवन के अंतिम क्षणों में जब आप मोहन नगर में रहने लगे तब आप के व्यक्तित्व में आमूल परिवर्तन दृष्टि गोचर होने लगा था लेकिन आप जन सेवा की अपनी भावना की निरन्तर बनाए रहे । आप सेवा भाव के उस व्यक्ति के साथ जहाँ उसका कार्य संपादित होना रहता था वहाँ आप स्वतंत्रता सेनानी के पास पर उसको भी ले जाया करते थे और उसका कार्य संपादित करने के लिए अथक प्रयास करते थे । अंतिम समय में आपने मानो ``इच्छा मृत्यु'' को वरण कर लिया था वे एक वक्त खाना खाने लगे थे । इस प्रकार आप का जीवन तूफान पार कर सकता है व जिसका जीवन तूफानी है ।'' बापू जी किसी भी परिस्थिति में गाली तो क्या अशोभनीय अशिष्ठ, अभद्र और असंसदीय शब्द अपने मुख से मुखरित नहीं करते थे । सामान्य वार्तालाप में भी आप के मुख से साले शब्द नहीं निकला । इस प्रकार आप जीवन पर्यन्त उच्च विचार के अनुयायी रहे और मनसा वाचा कर्मणा अहिंसावादी रहकर अपना जीवन स्वतंत्रता के लिए सदैव समर्पित करते रहे । अंग्रेज के लोग जब कभी उन्हें गिरफ्तार करने आये वे सदैव उनके साथ चले गये और कभी भी उनका विरोध नहीं किया ।
इसी प्रकार परिवार के प्रति भी उन्होंने कभी कोई रागद्वेष प्रदर्शित नहीं किया वे परिवार के लोगों की इच्छाआें का कभी विरोध नहीं करते थे । उनकी इसी सादगी के कारण उनकी अचल सम्पत्ति को अपनी इच्छाआें के अनुरुप परिवार के सदस्यों ने कब्जा कर लिया और उनका उन्होंने कभी भी विरोध नहीं किया । बापू जी कहा करते थे कि हमारा देश गुलाम है और गुलामी बड़ी बुरी चीज है। वे सामान्यत: एक दिन में १५ मिल की यात्रा कर लिया करते थे । कभी-कभी तो आप बिना खाना खाये केवल चना खाकर फाकते हुए रह जाते थे । बापू जी लकड़ी का व्यवसाय करते थे । आपके छोटे भाई मेरे कका रघुनंदन प्रसाद सिंगरौल दोनों जब जेल चले गये तब आप की लकड़ी व्यवसाय पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा । आप पद के पीछे कभी नहीं भागे लेकिन आपकी कर्मठता के कारण १९४५ में आपको नगर कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था । ईश्वर और धर्म में आपकी गहरी रूचि थी । रामचरित मानस और उनके उदात्व चरित्रों का स्मरण करना और उनमें रुचि रखना आपकी विशेषता थी । आपके ५ पुत्र हैं । जिनका नाम रवि, राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन है । मैं रवि का पुत्र होने के नाते उनका नाती हूँ तथा मेरा परम सौभाग्य है कि मेरा जन्म स्वर्गीय बापू (राम कुमार जी सिंगरौल और कका जी रघुनंदन सिंगरौल) के परिवार में हुआ । मैं दोनो ंराज प्रेमियों को श्रद्धा से नमन करते हुए अपनी पुष्पांजली समर्पित करता हूँ। बापू जी प्राय: जिस गीत को गाया करते थे उस गीत के शब्दों को यहाँ अभिलेखित करके मैं अपनी वाणी को विश्राम देता हूँ ।
ब्रिटिश युद्ध प्रयत्न में,
जन धन देना भूल है ।
सकल युद्ध अवशेष,
वर, सत्य, अहिंसा मूल है ।

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