सूचना का अधिकार

अ. संजय शर्मा, अधिवक्ता, दुर्ग

सूचना का अधिकार प्रत्येक नागरिकगण का एक विधिक अधिकार है । व्यवहारिक शासन पद्धति स्थापित करने हेतु इस अधिकरा का महत्वपूर्ण उपयोग है । शासन एवं लोक प्राधिकारियों के कार्यालयीन कार्य में पारदर्शिता एवं नागरिकगण को आवश्यक न्यायालयीन एवं कार्यालयीन जानकारी उपलब्ध कराने हेतु इस अधिकार का उपयोग किया जा सकता है ।
भारत गणराज्य के ५६वें वर्ष में सांसद द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम २००५, दिनांक १५.०६.०५ को पारित हुआ तथा दिनांक २१.०६.०५ को प्रभावी हुआ ।
इस अधिनियम की धारा २ (त्र) के अनुसार सूचना के अधिकार से इस अधिनियम के अधीन पहुँच योग्य सूचना का जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा या उसके नियंत्रणाधीन धारित है अधिकार अभिप्रेत है और जिसमें निम्न अधिकार सम्मिलित है -
१) कृति दस्तावेजों अभिलेखों का निरीक्षण ।
२) दस्तावेजों या अभिलेखों का टिप्पणी या प्रमाणित प्रतिलिपि लेना ।
३) सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना ।
४) डिस्केट, फ्लापी, टेप, विडियो कैसेट के रुप में या किसी अन्य इलेक्ट्रानिक रीति में या प्रिंट आउट के माध्यम से सूचना को जहाँ ऐसी सूचना किसी कम्प्यूटर या किसी अन्य रीति में भण्डारित की जाती है, अभिप्राप्त करना ।
अधिनियम की धारा ६ के अंतर्गत लोक सूचना अधिकारी को विहित सूचना हेतु आवेदन कर सकते हैं । सूचना प्राप्त करने के लिए अनुरोध है कि दस रुपये नगद शुल्क अथवा विभागीय प्राप्ति के मुख्य शीर्ष ००७० उप मुख्य शीर्ष ८०० अन्य प्राप्तियाँ में चालान द्वारा जो लोक प्राधिकारी के नाम देय हो अथवा मांग देय ड्राफ्ट या बैंक चैक के रुप में देय हो, के द्वारा जमा करना होगा । जिसका निपटारा ३० दिन के भीतर ऐसी फीस के संदाय पर जो विहित की जाये, करेगा । सूचना विहित फीस का संदाय कर इलेक्ट्रानिक प्रारुप में भी प्राप्त किया जा सकता है । सूचना जिसके प्रकरण से भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा रणनीति वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव हो, न्यायालय की अवमानना हो, संसद या किसी राज्य के विधान मंडल के विशेषाधिकार भंग हो, किसी व्यक्ति को उसकी वैश्वासिक नातेदारी में उपलब्ध सूचना, जिसके प्रकट करने से किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा के लिए या सूचना के संसाधन की पहचान करने में या विश्वास में दी गई सहायता या सुरक्षा प्रयोजनों के लिए खतरा होगा, सूचना जिसके प्रकट करने से अन्वेषण या अपराधियों के गिरफ्तार करने या अभियोजन की क्रिया में अड़चन पड़ेगी, सूचना जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक सम्पदा सम्मिलित है जिसके प्रकरण से किसी तीसरे पक्षकार की प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता है ।
सूचना अधिकारी के विनिश्चय से व्यथित व्यक्ति ३० दिन के भीतर ज्येष्ठ पंक्ति के सूचना अधिकारी को अपील कर सकता है । अधिनियम की धारा २ में केन्द्रिय सूचना आयोग के गठन का उपबंध है जिसमें मुख्य सूचना आयुक्त सहित दस से अनधिक केन्द्रिय सूचना उपायुक्त है।
धारा १५ के अंतर्गत राज्य सूचना आयोग के गठन का उपबंध है इसमें राज्य मुख्य सूचना आयुक्त सहित दस से अधिक राज्य सूचना आयुक्त होंगे । सूचना आयोग का मुख्य कार्य शिकायतों का निराकरण और जाँच करना है । सूचना आयोग में ९० दिन के भीतर अपील प्रस्तुत कर सकते हैं । आयोग का विनिश्चय आबद्धकर होता है ।
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