गिरफ्तारी -संवैधानिक संरक्षण एवं अन्य विधि

. रामेश्वर प्रसाद प्रजापति, अधिवक्ता, दुर्ग

`गिरफ्तारी' शब्द ही किसी व्यक्ति के धड़कन को गति बढ़ाने के लिये काफी है, यदि उसे गिरफ्तार किया जाता हो । पूर्व में गिरफ्तारी शब्द का सहारा लेकर कोई भी पुलिस अधिकारी यहाँ तक की एक अदना सिपाही भी किसी भी व्यक्ति को भय में डालकर प्रताड़ित कर अपनी मनमानी उस व्यक्ति के साथ कर लेता था परन्तु अब परिस्थिति बदल चुकी है । माननीय सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक सक्रियता एवं संविधान भाग ३ के अनु. २१ में किसी व्यक्ति को प्राप्त मूल अधिकार प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार एवं अनु. २२ में प्राप्त मूल अधिकार गिरफ्तारी एवं विरोध से संविधान के संरक्षण के परिपेक्ष्य में देश के नागरिकों एवं अनागरिकों में गिरफ्तारी का भय समाप्त होता जा रहा है तथा अब कोई पुलिस अधिकारी या कर्मचारी किसी निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तारी का भय दिखाकर प्रताड़ित नहीं कर सकता, यहाँ तक की किसी दोषी को भी गिरफ्तारी करने के पूर्व उसके वैधानिक अधिकारों से अवगत नहीं कराया गया तो ऐसी गिरफ्तारी अवैध हो जायेगी।

माननीय उच्चत्तम न्यायालय में डी.के.वासु विरुद्ध स्टेट ऑफ बंगाल ए.आई.आर. १९९७ एस.सी. ६१० में अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में देश के समस्त पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों को किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी करने के पूर्व निम्न निर्देशों का पालन कठोरते से करने का निर्देश दिया :-

१) गिरफ्तारी करने वाला या जाँच करने वाला पुलिस कर्मचारी का नाम सही, प्रकट और स्पष्ट होना चाहिये ऐसे सभी पुलिस कर्मचारी का, जो गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ करते हैं, उनका विवरण रजिस्टर में दर्ज होना चाहिए ।

) गिरफ्तारी करने वाले पुलिस कर्मी गिरफ्तारी के समय एक मेमो बनायेगा जो कम से कम दो साक्षियों द्वारा प्रमाणित होगी जो गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार के होंगे या मोहल्ले के प्रतिष्ठित व्यक्ति होंगे


) गिरफ्तार या निरुद्ध व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि उसके एक मित्र, सम्बंधी या किसी अन्य व्यक्ति जिसको वह जानता हो या जिसे उसकी कुशलता में दिलचस्पी हो, को इसकी सूचना दी जाए


४) पुलिस गिरफ्तारी का समय, स्थान, अभिरक्षा के स्थान की सूचना गिरफ्तार व्यक्ति के मित्र को देगा या यदि वह जिले से बाहर रहता है तो विधिक सहायता संस्था या उस क्षेत्र के पुलिस केन्द्र के माध्यम से तार द्वारा गिरफ्तारी की सूचना ८ से १२ घण्टे के भीतर अवश्य देना होगा ।

५) गिरफ्तार व्यक्ति को इस अधिकार के बारे में जानकारी होनी चाहिए कि उनकी गिरफ्तारी की सूचना यथाशीघ्र किसको दी गई है ।

६) निरोध के स्थान पर गिरफ्तारी की सूचना डायरी में दर्ज करनी होगी जिसमें उस मित्र के नाम का उल्लेख होगा, जिसे गिरफ्तारी की सूचना दी गई हो और उस पुलिस कर्मचारी के नाम और विवरण का उल्लेख होगा जिसके अभिरक्षा में गिरफ्तार व्यक्ति हो ।

७) गिरफ्तार व्यक्ति यदि प्रार्थना करता है कि उसकी जाँच कराई जाए तो उसके शरीर में पायी गयी छोटी या बड़ी चोटों को भी दर्ज किया जाना चाहिए ।

८) व्यक्ति की गिरफ्तारी के ४८ घण्टे में प्रशिक्षित डाक्टरों द्वारा राज्य या केन्द्र राज्य के स्वास्थ्य सेवा के निर्देशक द्वारा अनुमोदित डॉक्टरों के पैनल में से किसी डॉक्टर द्वारा डॉक्टरी जाँच कराना चाहिए । स्वास्थ्य निर्देशक सभी तहसीलों और जिलों के लिये ऐसा पैनल बनायेगा ।

९) सभी दस्तावेज जिसमें मेमो भी शामिल है, की प्रतिलिपियाँ क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को रिकार्ड के लिए भेजी जायेगी

१०) गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान अपने अधिवक्ता से मिलने दिया जा सकता है, यद्यपि पूछताछ के दौरान में यह आवश्यक नहीं है।

११) सभी जिलों एवं राज्य के हेड क्वार्टरों में पुलिस नियंत्रण या कक्ष बनाया जाना चाहिये जहाँ गिरफ्तारी एवं उसकी अभिरक्षा के स्थान की सूचना गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को १२ घण्टे के भीतर देना होगा और उसे पुलिस नियंत्रण कक्ष के स्पष्ट स्थान पर प्रदर्शित करना होगा

उपरोक्त मार्गदर्शन सिद्धान्तों के पालन में विफलता पर संबंधित अधिकारी विभागीय कार्यवाही के अतिरिक्त न्यायालय अवमानना के लिये भी उत्तरदायी होगा उसके विरुद्ध देश के किसी भी उच्च न्यायालय में, जिसे अधिकारित है,कार्यवाही प्रारंभ की जा सकेगी ।

नागरिकों का दावा कठोर दायित्व के सिद्धान्त पर आधारित होता है जिसके विरुद्ध संप्रभु के सिद्धान्त का बचाव उपलब्ध नहीं है, नागरिक राज्य से प्रतिकर पाने का हकदार है ।

नये संशोधित दण्ड प्रक्रिया संहिता २००५ के द्वारा धारा ५३ क द.प्र.स. में एक नया संशोधन उपरोक्त न्याय दृष्टांत के परिपेक्ष्य में किया गया है। जिसमें न्यायालयों पर भी उसके समक्ष गिरफ्तार कर लाये व्यक्तियों के संबंध में उक्त निर्देशों का पालन करने का, कर्त्तव्य अधिरोपित किया गया हो ।

कनिष्ठ अधिवक्ताओं से निवेदन है कि जब भी किसी गिरफ्तार व्यक्ति की पैरवी किसी मामले में करते हैं तो उक्त निर्देशों का पालन सुनिश्चित कराये तथा व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा करें ।

संविधान के अनुच्छेद १४१ के अनुसार माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत राज्य क्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्ध होगी । इस कारण उक्त मार्गदर्शन सिद्धांतों की अवहेलना किसी के द्वारा नहीं की जा सकती है ।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि किसी भी प्रकार का उत्पीड़न या क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार चाहे वह जाँच के दौरान प्रश्न पूछने के दौरान या अन्य स्थान पर हो, अनुच्छेद २१ का अतिक्रमण करता है, अत: वर्जित है

द.प्र.सं. की धारा ५७ के तहत् २४ घण्टे के अन्दर गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश है अन्यथा गिरफ्तारी अवैध 0000 प्रस्तुत करने का निर्देश है अन्यथा गिरफ्तारी अवैध हो जायेगी । धारा १६७ (२) द.प्र.सं. के तहत् यदि गिरफ्तार व्यक्ति के विरुद्ध ६० दिन या ९० दिन में अभियोग पत्र धारा १७३ (२) द.प्र.सं. के तहत् प्रस्तुत नहीं कर दिया जाता तो गिरफ्तार व्यक्ति जमानत पाने का अधिकारी होगा । (उदयमोहन लाल आचारी विरुद्ध स्टेट ऑफ महाराष्ट्र २००१ (१) सी.जी.एल.जे. ३०२,) परन्तु इस अधिकार का प्रयोग अभियोग पत्र प्रस्तुत करने के पूर्व तक ही रहेगा, उसके बाद नहीं ।

00000

0 comments:


अभिभाषक वाणी परिवार

श्री सुशील कुमार त्रिपाठी
(प्रधान संपादक)

श्री शकील अहमद सिद्दीकी
(संपादक)

श्री ताराचंद शर्मा
(प्रबंध संपादक)

सलाहकार मंडल

सर्वश्री जनार्दन प्रसाद शर्मा, संतोष चतुर्वेदी, बृजेन्द्र गुप्ता, रामेश्वर प्रजापति, सुदर्शन महलवार, समीर त्रिपाठी, नवजीत कुमार रमन, राजेश महाडिक, सुश्री कंचनबाला सिंह, शिव प्रसाद कापसे, टी.पी.सी.गुप्ता, भारत स्वर्णकार, मो.सगीर, मुरली देवांगन, यजवेन्द्र सिंह, सुभाष सतपथी, मो. मुनीर एवं कुमारी किलेश्वरी शांडिल्य।


मोबाईल संपर्क - 09926615707

  © Blogger template 'Greenery' by Ourblogtemplates.com 2008. और इसे अपने अनुकूल बनाया अभिभाषक वाणी के लिए संजीव तिवारी नें

Back to TOP