संपादकीय
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अदा में बांकपन अंदाज में एक आन पैदा कर
तुझे माशूक बनना है तो पूरी शान पैदा कर
किसी जिला अधिवक्ता संघ द्वारा अपने अखबार के शाया किए जाने का फैसला ही अपने आप में एक बड़ी खबर होता है । यूं तो हर वकील अपने आप में अकेला एक इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाला मजबूत योद्धा होता है । पर अगर वकीलों का एक समूह जुड़कर कोई काम कर रहा है तो इसमें कोई शक नहीं है कि समाज के हर तबके को `इंसाफ का हक' हासिल करना आसान होगा ``अभिभाषक वाणी'' भी दुर्ग जिला अधिवक्ता संघ की इस दिशा में एक ईमानदार कोशिश है और ये मेरी खुशकिस्मती है कि संघ के इस तारीखी उपलब्धि में संपादक के रुप में मेरे भाई सचिव ओम प्रकाश शर्मा, अध्यक्ष नीता जैन, उपाध्यक्ष ऋषिकांत तिवारी, सह-सचिव पंडित अजय मिश्रा, कोषाध्यक्ष कमल किशोर वर्मा एवं ग्रंथपाल उपेन्द्र सिंह राजपूत ने खास तौर पर मुझ नाचीज़ पर भरोसा कर इसमें शामिल करने का फैसला किया और ``अभिभाषक वाणी'' में दुर्ग के तमाम वकील साहबों की एक अच्छी टीम बनाकर इस मुश्किल काम को आसान बनाया । किसी भी नए काम में शुरुआती दिक्कतें आती ही है और ये भी तय है कि बिना दिक्कतों के कोई भी अच्छे काम पूरे नहीं होते और मुझे ये पूरा भरोसा है कि ``अभिभाषक वाणी'' का जिस अच्छी तरह से आगाज़ हो रहा है, आप सभी शुभचिंतकों की दुआओं और सहयोग से आगे का रास्ता भी अच्छी तरह से तय किया जाता रहेगा। ``अभिभाषक वाणी'' न सिर्फ प्रदेश के बल्कि पूरे देश में हमारे अभिभाषक बन्धुओं की वाणी बने और जिस पौधे को इस अधिवक्ता संघ ने रोपा है उसको पेड़ बनाकर उसकी छांव आगे के लोग पायें यह हमारी कामना है ।
साये में आते ही वो आदमी याद आता है
जिसने कुछ सोच के ये पेड़ लगाया होगा ।
हमारे मुल्क की आजादी से लेकर आज तक हमारे
आज का अभिभाषक अपने को परंपरा से कटा हुआ भविष्य के प्रति निराश और वर्तमान में निरर्थक जीवन की विसंगतियों से घिरा हुआ अनुभव करता है । इन्हीं निरर्थक जीवन की विसंगतियों को सुलझाने के ध्येय से दुर्ग जिला अधिवक्ता संघ ने ``अभिभाषक वाणी''नाम से मासिक पत्रिका के प्रकाशन का निर्णय लिया । शायद यह राष्ट्र में नहीं तो कम से कम छत्तीसगढ़ अंचल में संघ द्वारा इस प्रकार की पत्रिका का प्रकाशन करने का निर्णय प्रथम है, जो अधिवक्ताओं के आक्रांत जीवन (ओब्जेक्टिव-फिकेशन) से निरसता को समरसता में परिवर्तित करने की विचारधारा से महत्वकांक्षाओं की मोती को संघर्षों की सीपी में पालने का उपक्रम करते हुए अभिभाषक वाणी में मुखरित होने जा रही है ।
अभिभाषक वाणी में संघ की गतिविधियों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों को समाहित करते हुए निरसता को समरसता की धारा में प्रवाहित करने की इच्छाशक्ति रखकर अपने पाथे पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है ।
अभिभाषक वाणी विधि विषेयक लेखों, न्याय दृष्टांतों, कविताओं और आलेखों के माध्यम से मुकुलित होने का प्रयास करेगी । इस कार्य हेतु मैं आप सबको सादर निमंत्रित करते हुए विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि आपकी आनंदाभूति सम्पूर्ण अभिभाषक की वाणी के रुप में इस पत्रिका में यथोचित स्थान प्राप्त करेगी।
हम अधिवक्ताओं के सहज, सरस और सपाट बयानगीयुक्त सरल भावों को विषयों की सीमा में बेबाक अभिव्यक्त करने का प्रयास करेगी जिससे नव अधिवक्ता अपनी अभिव्यक्त शैली को परिमार्जित कर सकेंगे और व्यवसायिक पथ पर प्रगति की ओर आगे बढ़ेंगे।
आप अपने विचारों (आलेख, निबंध, कविता आदि के माध्यम से) को हम तक प्रेषित करें, हम उनको नि:संकोच प्रकाशित करेंगे । हमारी त्रुटियों की ओर भी आप हमारा ध्यान आकर्षित करें क्योंकि इसके माध्यम से ही हमारा उत्साहवर्धन होगा।
इस अंक में जो कुछ भी है वह आपका अपना है अत: हमें आपकी रचनाओं और भावों को आपके हाथों में सौंपने का प्रयास भर कर रहे हैं। इस प्रेषणीयता में जो भी त्रुटियाँ हुई हो उन सब की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें हम उन्हें सुधारने का अथक प्रयास करेंगे ।
जिला अधिवक्ता संघ की अध्यक्ष सुश्री नीता जैन, उपाध्यक्ष श्री ऋषिकांत तिवारी, सचिव श्री ओम प्रकाश जी शर्मा, कोषाध्यक्ष श्री कमल किशोर वर्मा, सह-सचिव पं. अजय मिश्रा तथा पुस्तकालय प्रभारी श्री उपेन्द्र सिंह राजपूत ने अभिभाषक वाणी परिवार के निर्बल स्कंधों पर विश्वास करते हुए इस असाध्य कार्य को साध्य बनाने की जो जवाबदेही प्रदान की है उसके लिए अभिभाषक वाणी परिवार इन सबको हृदय से आभार व्यक्त करता है ।
जिला न्यायालय में पदस्थ न्यायाधीशों के उत्साहवर्धन ने अभिभाषक वाणी को मुखरित करने के लिए हमारा उत्साहवर्धन किया है । उन सब के प्रति अभिभाषक वाणी परिवार श्रद्धा से नमन करता है ।
अभिभाषक वाणी के समस्त सदस्यों ने अपने - अपने गुरुत्व भाव का निर्वाह जिस ईमानदारी और निष्ठा से किया है उन्हें शब्दों में अभिलेखित नहीं किया जा सकता है । विशेषकर अपने सहयोगी शकील अहमद सि ीकी का अथक परिश्रम ही अभिभाषक वाणी को इस रुप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर सका है । उन्हें मैं आशीर्वाद देता हूँ ।
अपने साथी अधिवक्ताओं के समक्ष अभिभाषक वाणी का कोई भी सदस्य जब भी इसके स्वरुप को श्रृंगारित करने के उ ेश्य से मिला, सब ने उन्हें सहयोग प्रदान किया । अभिभाषक वाणी परिवार उनके प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता है ।
अंत में जयशंकर प्रसाद जी के इन शब्दों में मैं अपनी लेखनी को विराम देना चाहूंगा
``सृष्टि हंसने लगी, आँखों में खिला अनुराग,
राग रंजित चंद्रिका थी, उड़ा सुमन पराग''
शकील अहमद सिद्धीकी
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