सर्वोच्च न्यायालय : न्याय दृष्टांत
#सिविल निर्णय
१) हिन्दू महिला द्वारा पुत्र का दत्तक ग्रहण कब किया जा सकता है । २००८(२)एस.सी.सी.डी. ७७३ (एस.सी.) ब्रजेन्द्र सिंह वि. म.प्र. राज्य एवं एक अन्य
२) कोई साक्ष्य या तर्क की अभिवचनों और विवाधकों के अभाव में जाँच नहीं की जा सकती और उस पर विचारण नहीं किया जा सकता है । २००८(२)एस.सी.सी.डी. ८४५ (एस.सी.) अनाथुला सुधाकर वि. पी. बुच्ची रेड्डी
३) सास की सम्पत्ति पत्नी एवं उसके पुत्र के भरण-पोषण के लिए कुर्क नहीं की जा सकती ।२००८(२)एस.सी.सी.डी. ५८७ (एस.सी.) विमला बेन अजीत भाई पटेल वि. वत्सला बेन अशोक भाई पटेल एवं अन्य
४) फुटकर मदिरा दुकान आवासीय बस्ती इत्यादि से १०० मीटर या ३०० फीट (लगभग) के भीतर नहीं खोली जायेगी । २००८(२)एस.सी.सी.डी. ६०३ (एस.सी.) उ.प्र. राज्य एवं अन्य वि. मनोज कुमार द्विवेदी
५) यदि उपभोक्ता न्यायालय विवादों के सुसंगत पहलुओं पर विचार नहीं करते हैं तो उनके आदेश अपास्त किये जाने योग्य हैं । २००८(१)एस.सी.सी.डी. १७३ (एस.सी.) तमिलनाडु आवास परिषद एवं अन्य वि. सीशोर अपार्टमेंट ओनर्स वेलफेयर एसोसियेशन ।
# दांडिक निर्णय
१) चैक को प्रत्येक बार पेश करने और उसका अनादरण होने पर नया वाद हेतुक उत्पन्न नहीं होता । २००८(१)सी.सी.एस.सी. ५०३ (एस.सी.) अनिल कुमार गोयल वि. किशनचंद कौरा
२) प्रकटन कमजोर प्रकार का साक्ष्य है जिस पर सम्पूर्ण रुप से विश्वास नहीं किया जा सकता । २००८(१)सी.सी.एस.सी. १७७ (एस.सी.) मनी वि. तमिलनाडु राज्य ।
३) जब प्रथम सूचना रिपोर्ट किसी संज्ञेय अपराध को प्रकट नहीं करती तो वह अभिखंडित किए जाने के लिए दायी होती है । २००८(२)सी.सी.एस.सी. ८२९ (एस.सी.) रेश्मा बानो वि. उ.प्र. राज्य
४) अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य की दृष्टि में अनिवार्य निष्कर्ष यही कि समुचित दोष सिद्धि - धारा ३०४ (भाग २) भ.द.सं. के ही अधीन होगी। दोष सिद्धि तदानुसार परिवर्तित २००८(२)सी.सी.एस.सी. ७३२ (एस.सी.) दयानंद वि. हरियाणा राज्य
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