शीघ्र सस्ता और सुलभ न्याय मात्र कल्पना

दुर्ग। भारतीय विधि सत्यम शिवम एवं सुन्दरम पर आधारित है। खेद है कि आज इस मूल वाक्य की घोर उपेक्षा कतिपय लोगों के द्वारा संपादित की जा रही है। भारतीय विधि में यह सत्य भी समाहित है कि न्याय विलम्बन हो और शीघ्र से शीघ्र न्याय लोगों को प्राप्त हो लेकिन प्रकरणों की लंबी संख्या, अधिवक्ताओं, न्यायाधिशों एवं साक्षियों के समय पर उपस्थित नहीं हो पाने के कारण शीघ्र न्याय का सिद्धांत भी केवल पढऩे और कहने की बात हो गई है। वास्तव में न्याय देरी से प्राप्त होना न्याय को नकारना कहा जाता है लेकिन आज हम खेद के साथ स्वीकार करते है कि साक्षियों, वादियों आम प्रक्तों और प्रतिवादियों की मृत्यु कारित हो जाती है लेकिन उन्हें समय स न्याय नहीं मिल पाता है। शीघ्र, सस्ता और सुलभ न्याय का सिद्धांन भी हमारी न्याय प्रणाली में संभव भी हो पा रहा है सस्ता न्याय आज के परिपेक्ष मे असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गई है। मंहगी न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायालयों में जाने की हिम्मत नहीं कर पाता है वह जिसकी लाठी उसकी भैंस की उक्ति के अनुसार अन्याय को सहने के लिए विवश हो जाता है। सुलभ न्याय की दृष्टी से भी हम आज जनता को सुलभ न्याय प्रदान करने में पूर्ण असक्षम है। यह तथ्य भी आज प्रमाणित हो गया है। आज पूरे देश में न्याय पालिका का और हमारी संवैधानिक योजना में इसकी भूमिका की महत्व को पूरा समझ ना लिया जाए जो कि संविधान के तीसरे भाग में मूल अधिकार दिये गये हैं और यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ऐसी कोई कानून निरस्त समझा जायेगा, जिसमें मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है। न्याय पालिका को संविधान की व्याख्या का दायित्व सौंपा गया है यह न्यायपालिका का उत्तरदायित्व है कि वह संविधान की मूल्यों को लागू करें। अदालत का काम महज यह देखना भर होता है कि कोई भी कानून या प्रशासनिक निर्णय संविधान के अनुकूल है या नहीं यह केवल संविधान की रखवाली का काम करती है। अदालतें ना तो गोलमाल बातें कर सकती है ना किसी बात को स्थगित कर सकती है। दबाए हुए और दमित किये गये व्यक्ति की पुकार पर न्यायालय को प्रतिक्रिया करनी होगी। न्यायिक सक्रियता का ऐसी ही दौर दूसरे प्रजातांत्रिक देशों में देखा जा रहा है, आज देश की सबसे बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार जो कि यह स्पष्ट है कि उच्च पदस्थ व्यक्ति भ्रष्टाचार में आंकठ लिप्त है। जांच-पड़ताल करने वाली एजेंसियां भी मिलीभगत करके निष्क्रियता के कारण ही संभव हुआ है। न्याय हो भी और न्याय होते भी दिखे भी अब चाहे वह कोई भी न्यायालय हो सुपष्ट, सक्षम, निर्भय तथा विधि विद्धांतो का सही पालन करके ही आम जनता को शीघ्र, सरल एवं संतुष्टिजनक न्याय दिलाएं जावें, इसमें आम सभी न्यायिक क्षेत्र में कार्यरत समस्त अधिवक्ताओं, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, समस्त न्यायाधिशों, जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा प्रधान न्यायाधीश कुटुम्ब न्यायालय एवं समस्त न्यायलयीन विभागों में कार्यरत बड़े बाबुओं एवं महिलाओं को भी इस न्यायिक सक्रियता में सहयोग प्रदान करके न्यायालय की संपूर्ण कार्यवाही में सहयोग देकर दुर्ग जिला न्यायालय को गौरवान्वित करें।

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