माझी ले चल ते पार मा
मुवक्किल :
``रेंगत रेंगत, आय हो वकील साहेब,
पेशी ला करवाये बर,
जल्दी से पेशी करवा दे,
घर है, जल्दी जाय बर ।''
``दाई ह बीमा चलथे,
नोनी घलो बीमार हवे
डौकी थर थर कापत हवे,
सब्बो के बेहाल है ।।''
``गाँव में अकाल ह पडगे,
मजदूरी अब मिले नही ।
परदेश ह जाय बर पडही,
रोजी रोटी खोजे बर ।।''
``लम्बा पेशी करवा देबे,
परदेश ह मोला जाय बर ।
लौट के आहू, पैसा कमाके,
मोर घर ला जिलाये बर ।।''
वकील बोलीस :-
``ठीक है, चैतराम,
पेशी तो करवा देहू ।
फीस फटाफट देदे मोला,
केश ह जल्दी निपटा देहंू ।।
मुवक्किल बोलिस :
``फीस मोर करा होतीस तो.
परदेश कमाय बर काबर जातेव ।
घर भर ह बीमार पडीस,
ये तोला काबर बतलातो ।।
``सून, वकील साहब,
धीरज के धर ।
मोर जेब ह खाली है,
गाँव जाय बर,
पैसा देदे,
तोर जेब ह भारी है ।।''
``अगला पेशी आहू,
तब मै, पैसा ला लोटा देहू ।
चिन्ता ते झन कर वकील साहब,
कोडी कोडी तोला देहू ।।
``वकील ह सोच मे पड गीस,
कइसन कइसन मिलथे क्लाईन्ट ।
क्लाईन्ट ह, पेशी लेकर भागीस,
पिछु मुडकर देखत ना ।।''
अपन दुख ला का सुनाबो ।
जैसे चलथे, वैसे चलाबो,
अपन गृहस्थी के नाव ला ।।''
हो माझी, लेचल ते पार मा ।
ताराचन्द शर्मा, अधिवक्ता, दुर्ग
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